महत्वपूर्ण तिथियां
- 1869 में गुजरात के पोरबंदर में कस्तूरबा का जन्म हुआ
- 1882 में गांधीजी से विवाह हुआ
- 1896 में कस्तूरबा गांधीजी के साथ साउथ अफ्रीका गईं
- 1901 में भारत लौटीं और बोम्बे में बस गईं
- 1906 में कस्तूरबा साउथ अफ्रीका गईं और फिनिक्स समझौते के अनुसार घरेलू पक्ष की प्रभारी बनी
- 1906 में गांधीजी द्वारा ब्रह्मचर्य का प्रण लिया गया
- 1908 में कस्तूरबा को जेल की सजा सुनाई गई
- 1915 में कस्तूरबा, गांधीजी द्वारा अहमदाबाद में स्थापित 'सत्याग्रह आश्रम' की प्रथम सहवासी बनी
- 1916 में कस्तूरबा ने चंपारण अभियान में भाग लिया
- 1930 में बारडोली में 'कोई कर नहीं' अभियान और नमक सत्याग्रह में भाग लिया
- 1932 में बंदी बना ली गई
- 1933 में साबरमती आश्रम से गिरफ्तार की गई और 5 माह के लिए एकांत अलगाव की सजा सुनाई गई
- 1939 में राजकोट संघर्ष में नेतृत्व किया और एकांत कारावास में डाल दी गई
- 1943 में 9 अगस्त को गिरफ्तार कर ली गई
- 1944 में 22 फरवरी की शाम 07:35 बजे कैद में देहांत हो गया
उसका जीवन और मृत्यु
(महात्मा गांधी द्वारा)
"हमारी जोड़ी साधारण से भी कम कही जा सकती थी। यह 1906 की बात है, जब एक आपसी सहमति और बेखबरी में परीक्षणों के बाद, हमने जीवन में निश्चित रूप से आत्म संयम को नियम के रूप में अपनाया था। यह मेरे लिए महान प्रसन्नता थी कि इसने हम दोनों को एक साथ ऐसे जोड़ा था जैसे पहले कभी हम नहीं जुड़े थे। मेरी इच्छा के बिना हमारी दो अलग-अलग अस्तित्वों का अंत हो गया था; उसने स्वयं को मुझे में खोना चाहा था। परिणामस्वरूप वह सही मायने में मेरी अर्धांगिनी बन गई। अपने शुरुआती दिनों में वह हमेशा से बहुत मजबूत इच्छा शक्ति वाली औरत थी और मुझे हठ करने का गलत अभ्यास हो गया था। लेकिन उसकी मजबूत इच्छा शक्ति ने उसे, अनजाने में काफी सक्षम बना दिया और वह अहिंसक, असहयोग की कला और अभ्यास में मेरी शिक्षिका बन गई। यह अभ्यास मेरे अपने परिवार के साथ शुरू हुआ। 1906 में जब मैंने राजनीतिक क्षेत्र में इस की शुरूआत की तो यह और अधिक व्यापक एवं विशेष रूप से गढ़े गए सत्याग्रह के नाम से जाना जाने लगा। जब भारतीय कैद के दौरान दक्षिण अफ्रीका में कस्तूरबा सिविल सत्याग्रहियों में से एक थी। उस दौरान उसने कठिन से कठिन शारीरिक जुल्म सहेI हालांकि वह कई बार कैद में रही थी, पर उसने उस दौरान सभी कैदियों की तरह असुविधा में रहने का विकल्प चुना। मेरी गिरफ्तारी के साथ-साथ कई अन्य लोगों की भी गिरफ्तारी हुई थी जिसमें वो खुद भी थी, जिसने उसे बहुत बड़ा झटका और कड़वाहट दी। वह मेरी गिरफ्तारी के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं थी। मैंने उसे आश्वासन दिया था कि सरकार को मेरी अहिंसा पर भरोसा है और वो मुझे तब तक गिरफ्तार नहीं करेगी जब तक कि मैं अपने आप गिरफ्तारी न दूं। दरअसल नर्वस शॉक इतना महान था कि उसकी गिरफ्तारी के बाद वह खतरनाक डायरिया की चपेट में आ गयी लेकिन कैद में उसके साथ बंद डा. सुशीला नायर की तीमारदारी ने उसे वापिस सचेत हालत में लाने के लिए सक्षम किया। हो सकता था जब तक मैं नजरबंदी शिविर में उससे मिलता तब तक मौत उसे अपने साथ ले जाती पर ऐसा नहीं हुआ और शिविर मेरी उपस्थिति ने उसे सांत्वना दी और बिना किसी भी बाधा के डायरिया खत्म हो गया। और उसकी कड़वाहट भी खत्म हुई। इसने चिड़चिड़ापन खत्म करके शरीर के स्वस्थ होने की सुस्त रफ्तार को तेज़ कर दिया।"
एक श्रद्धांजलि 'बा' को
मई 1933 में "स्वयं और स्वयं के साथियों की शुद्धि" के लिए गांधीजी द्वारा 21 दिन के उपवास की घोषणा एक वज्र की तरह कस्तूरबा और मीरा बेन पर गिर पड़ी थी। यह समाचार सुनने के बाद में 'बा' और उनकी ओर से गांधीजी को निम्न संदेश भेजा गया।
"आज ही आपके उपवास की खबर मिली। बा ने मुझे कहा कि उनको बहुत बड़ा झटका लगा है और वह मानती हैं की आपका यह निर्णय बहुत ही गलत है लेकिन आप किसी की सुनेगे नहीं, इसलिए आप उनकी भी नहीं सुनेगे। वह आपको अपने हृदय से प्रार्थना भेज रही हैं। मैं दंग हूं, लेकिन पता है कि यह भगवान की आवाज है और इस मायने में पीड़ा के बीच में आनन्दित रहा जा सकता है।"
गांधीजी की आखें खुशी के आंसू से गीली हो गयी थी, उन्होंने इसके उत्तर के रूप में एक टेलीग्राम किया उन्होंने लिखा था:-
"बा को बताओ कि उसके पिता ने उसके साथ एक ऐसा साथी लगाया है जिसके वजन ने किसी भी औरत को मार दिया होता। मुझे उसके प्यार का खजाना मिला है वह अंत तक साहसी बनी रहनी चाहिए। आपके लिए, मैं कुछ भी नहीं लेकिन मेरे पास केवल भगवान को देने के लिए धन्यवाद है की उन्होंने आपको मुझे दिया है। भगवान ने मेरे लिए जो नवीनतम इच्छा की है उसके लिए आपको अपनी बहादुरी को निरंतर खुशी के द्वारा साबित करना होगा। प्यार."
बापू और बा
1915 की शुरुआत में उनकी भारत वापसी के बाद जल्द ही, मद्रास के लिए कस्तूरबा द्वारा भुगतान की गयी यात्रा में गांधीजी उनके साथ थे। वे वरिष्ठ पत्रकार श्री जी.ए. नटेसन के मेहमान बने। श्री नटेसन को यह महसूस हुआ कि कस्तूरबा का मिजाज असहज है एक अवसर पर उन्होंने गांधीजी का ध्यान इस ओर दिलाया। श्री नटेसन के अनुसार गांधीजी ने इसका उत्तर देने में क्षण भर भी नहीं लगाया और तुरन्त उससे कहा कि "इसका कारण वह खुद है", और इसी के साथ उन्होंने आगे कहा कि, "वह मुझे अपने पोते पोतियों के लिए महंगे कपडे खरीदने के लिए अपने पैसे देना चाहती थी"।
इस पर श्री नटेसन ने मज़ाक में सोचा कि गांधीजी "एक क्रूर पति" हैं लेकिन जल्दी ही उनको पता चला जब गांधी जी ने कहा:
"देखो यहां, आप मुझ पर कड़ी मेहनत कर रहे हैं; अगर मैं उसकी सभी इच्छाओं को पोषित करना शुरू कर दूं तो यह मेरे सिद्धांतों को छोड़ने का प्रश्न बन जाता है। वह पूरी तरह से मेरे विचार को जानती है और मेरे जीने के तरीके के साथ काफी परिचित है। मैंने उससे प्रार्थना की है कि वह अधिक से अधिक मुझसे दूर रहे और परेशानी से बचे तथा अपने बच्चों के साथ खुश रहे। लेकिन वह ऐसा नहीं करती। वह श्रद्धालु हिंदू पत्नी की तरह जहां मैं जाता हूं वहां मेरा पीछा करने पर जोर देती है।"